किस्सा है कुर्सी का
किस्सा है कुर्सी का
किस्सा है कुर्सी का
हर वक़्त बदलता रहता है
आज है कोई शेर
तो कल होगा ढेर
उल्टा लटकाती है यह कुर्सी
तो कभी महाराजा बनाकर बैठाती है
कभी राजा को रंक
तो रंक को राजा बनाती है
इज़्ज़त से बाते करना
उसे देखो कैसे ज़िंदगी के रंग दिखलाती है
हर वक़्त खेल खेलती है
देखो कैसे रंग दिखलाती है
दूर ही रहना इनसे नही तो नाच नचाएगी
वक्त बदलते देर नहीं लगती
देखो कैसे रंग दिख़लाती है
भाई किस्सा है कुर्सी का
देखो वक़्त बदलेगी !