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गौरव जी : सब-इंस्पेक्टर

गौरव जी : सब-इंस्पेक्टर

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इक माँ-बाप के नूर फ़ख्र ने आज तिलिस्म कर दिया,

इक आफ़ताब ने ज़माने में अपना नूर बिखेर दिया।

किन लफ़्ज़ों से नक़्ल करूँ उसके इजाज़ को,

इक आगाज़ करके वो पयाम दे दिया।।


मलालत के आब-ए-तल्ख़ के घूंट को वो पी गया,

पर अपनी अफ़सुर्दगी को आकिबत में बदल दिया।

उसके अत्फ़ की इख्लास को नादान जीत का सलाम

पर अपनी तासीर से उसने हर तारीक मिटा दिया।।


आज वो सब इंस्पेक्टर r बनकर तरक़्क़ी कर गया,

सबको तश्रीफ़ से तस्लीम करने को विवश कर दिया।

कल तक जो उसे समझते नहीं थे,

उसने आज सबको अपनी क़ाबिलियत का दीदार करा दिया।।


नाज़ होगा अब हर किसी को उसपे जो उसने कर दिया,

अज़ीम शख़्सियत ने आज रुख़सारों को गुलज़ार जो कर दिया।

अपनी आफ़ात से लड़ना किसे कहते हैं

तिश्नगी मुकम्मल मुकाम कि कैसे हो वो ये सिखा दिया।।


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