जिंदगी के मायने
जिंदगी के मायने
क्यों ये साँसे मिली है ?
क्यों करते है हम कोई भी काम?
क्या हो सकता है इस जिंदगी का ध्येय?
एक
हमें आता है कहानियाँ गढ़ना,
उन कहानियों पर यकीन करना
हमने ईश्वर जैसा पात्र रचा,
उसके उपदेशो को खुद ही गढ़ा,
फिर इस कहानी में हम अपनी भूमिका खोजते है,
उसी भूमिका को जीते है, उसी के लिए जीते है,
हमने मान लिया है कुछ खास तरीको से रहना,
ईश्वर को अच्छा लगेगा,
हमें इस जीवन और जीवन के बाद भी
इनाम मिलेगा,
वो खास तरीके हमारी गढ़ी कहानियाँ है,
पर अब हम ये भूल चुके है,
उन कहानियों को जीवन की सच्चाई मान लिया है,
इसी की भूमिका को निभाना जिंदगी
या कहें की कहानी बढती ही जा रही है,
हम आज के हिस्से में फंसे रह गए है,
बाकी पीछे जो छूट गई,
उसे एक साथ समझना मुश्किल हो रहा है .
इन कहानियों को गढ़ने से पहले भी जीवन था,
या जो जीव कहानी नहीं बनाते कैसे जीते है?
कहानियाँ बदलती भी रही है,
नयी गढ़ी भी गई है,
राष्ट्रवाद भी ऐसी ही एक कहानी है,
इसमें यकीन रखने वाले
देश के लिए जीते है,
बाजारवाद भी ऐसी ही कहानी है
इसमें फंसे लोग संसाधनों को हासिल करना
जिंदगी समझते है
जिंदगी मिली है,
सेवा के लिए
दूसरों की भलाई के लिए,
मानव जाति के उत्कर्ष के लिए,
इसको मानने वाले भी कम नहीं है
जिंदगी एक विकास का उपक्रम है
यूनिवर्स बना, खगोलीय पिंड बने,
और बना हमारा सौर मंडल
बिलियन साल पहले
जीवन सरल से जटिल की
सतत यात्रा पर चलता जा रहा है,
उसी यात्रा में एक पड़ाव
“मानव होना” है
इसके होने के मतलब को तलाशना
बेमतलब की बात है
हम कैसे आये,
क्यों आये,
जो कुछ हमारे आस पास घट रहा है,
क्यों और कैसे ?
इनको समझने की एक कोशिश है
जिंदगी
जितना पता लगा लिया
उसे आगे पास करने को मिली है ये
जिंदगी
खुद से हर कोई गढ़े कुछ लक्ष्य
उन्हें पाने में झोंक दे सारा जीवन,
जो कुछ करे उसी लक्ष्य के लिए
बस जीते जाओ,
करो जो करना चाहो,
क्या हासिल होगा
बस ये मत सोचना
बस करते जाओ, जीते जाओ
जिंदगी के मायने खोजने में ही
ख़त्म हो जाएगी ये जिंदगी
कुछ अस्तित्व में हो तो खोजा जाए
नहीं तो गढ़े तो है कई मायने
किसी एक को पकड़कर जी लिया जाए
पर अब इस सवाल के बिना जीना मुश्किल होगा ?
इंसान को उसके जिन्दा होने की वजह तलाशनी होगी,
तलाश करना तो जिंदगी के मायने
नहीं हो सकता ?