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"मेरी कविता "

"मेरी कविता "

2 mins
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अलंकार की... चाह नहीं,

यमक श्लेष... अनुप्रास नहीं !

कुछ कहती... कुछ सुनती हूं,

हाँ... मै कविता करती हूं !!


छंद दोहा सवैया में,

मेरी कोई पैठ नहीं,

सुरों की तान में,

मेरी कोई लय नहीं !!

दिल की अपनी बातें,

बस गुनते ही रहती हूँ !

हाँ, मैं कविता करती हूँ !!


गीत बने या बने कविता,

मेरा कोई दखल नहीं !

कुम्हार के चाक पर घूमती,

कुछ ढ़लते ही रहती हूँ !

हाँ... मैं कविता कहती हूं !!


संसद के गलियारों की,

चौकों और चौबारों की !

नायक के जयकारों की,

सैनिक के बलिदानों की !

किसानों के माथे के सल की,

बातें करते रहती हूँ....

हाँ...मैं कविता कहती हूँ..!!


भावनाओं में बहती हूं,

झरना निर्झर झरती हूँ !

नदियां सी बल खाती हूँ,

समंदर में खो जाती हूँ !

हां मैं कविता लिखती हूं !!


मन में उठते गुबारों का,

द्वंदो का, समाधानों का !

मन की गूढ़ गलियों में,

भटकती सी रहती हूँ !

हाँ... मैं कविता करती हूँ !!


चंदा सी स्निग्ध चाँदनी,

तारों सी झिलमिलाती हूँ !

मलय पवन संग उड़कर आती,

बन ओस जम जाती हूँ !

हाँ...मैं कविता करती हूँ..!!


प्रिया की आहों की कसक,

प्रियतम के आहट की महक !

विरह योग हो या क्षृगांर रस,

मतवाले पवन सी बहती हूँ !

हाँ...मैं कविता कहती हूँ !!


खुद से सवाल मैं करती हूं,

खुद जवाब मैं बनती हूं !

शब्दों के इस भंवरजाल में ,

डूबी डूबी रहती हूँ !

हाँ, मैं कविता लिखती हूं !!


कुछ जग की, कुछ अंबर की,

कुछ बातें मन की तेरी !

कुछ बातें मेरे मन की,

शब्दों में ढ़लते रहती हूँ !

हाँ, मैं कविता करती हूँ !!




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