पर्यावरण
पर्यावरण
धरती आकाश गगन में
फैला जग सारा है,
यहाँ न कुछ तेरा न मेरा
और न कुछ हमारा है,
सब कुछ उसका है
सब कुछ उससे है,
पलता जिससे जग सारा है
जो है फैला चारो ओर आवरण में
जिससे है हम वो पर्यावरण हमारा है !
सदा है हम जिनमे रहते
फिर संग क्यूँँ नही उनको रखते ?
जिनका हमसे न कोई नाता है
फिर उनके संग क्यूँँ इतने रंग बदलते ?
सब कुछ होकर भी उनपे हम निर्भर रहते
वो क्यूँँ कभी कुछ हमसे नही मांगा करते
बस बहुत हो गया अब एक रिश्ता बनाओ
गर्व से उठ सब मिल पर्यावरण बचाओ !
देख व्यवहार कुदरत भी
इंसान से घबराया
मैंने तुझे बनाया
और तूने कर दिया मुझे पराया
मैंने धरती को जन्नत बनाया
लेकिन तू रहकर भी समझ न पाया
बस बहुत हो गया अब समझो और समझाओ
गर सुखमय जीवन बनाना है तो पर्यावरण बचाओ
क्यूँँ फैलाते हो कहर प्रदूषण का ?
क्यूँँ कर रहे विनाश धरती माँ का ?
क्यूँँ बना अपना घर उजाड़ते हो घर किसी परिंदे का
क्यूँँ बना रहे मौत का कारण अपनी ज़िंदगी का
बस बहुत हो गया अब नही किसी का घर उजाड़ो
न ही किसी को और सताओ !
मिलकर रहना है सबको साथ तो पर्यावरण बचाओ !