अस्पताल
अस्पताल
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बीमारों की भीड़ में, हैं अपने कुछ लोग
रोज़ दवाई खा रहे, दुख को रहें हैं भोग
चारों और हैं सुन रहे, लोगों के दुख की बात
काटे से न कट रही, लम्बी है जो दुख की रात
घर का बिस्तर है सूना और, वहाँ भी है तन्हाई
यह इन को क्या हो गया, क्यों दुख की घड़ी है आई
हम भगवन से कह रहे, सब जल्दी अच्छे हो जाऐं
ख़ुशी-ख़ुशी ही यह सारे, अपने-अपने घर जाऐं