पिता की भावनाएँ
पिता की भावनाएँ
"पिता" परिवार का
सबसे मजबूत स्तंभ
निभाता सभी रिश्तों को
हर्ष और गर्व के साथ
"पुत्र " में देखता अपने
प्रतिबिम्ब को
और लगाता आस
अपने अधूरे सपनों की
पिता निरंतर बचाता
समाज की बुराइयों से
और बन जाता एक ढाल
समर्पित कर देता अपने जीवन को
पिता एक ऐसा जूनून
जिसमें बेटे को
अपने से भी आगे
जाने में मिलता सुक़ून
झोंक देता है अपनी जवानी के
बेहतरीन लम्हों को
बेटे की पढ़ाई
और तरक़्क़ी पर
हर जगह करता अपने बेटे की बड़ाई
गर्व से कहता , यही है मेरे जीवन की कमाई
पिता , ढूँढता एक सच्चे मित्र
को अपने बेटे में
बाँटना चाहता सभी
सुख-दुःख की बातें
यक़ीन माने कि
बेटे को ऐसा विश्वास पात्र
मित्र पूरे जीवन में नहीं मिल सकता
बेटे को इतना क़रीबी मित्र नहीं दिखता
पिता संकोच करता
अपनी बातों और प्यार
का इज़हार करने में
करता इंतेज़ार बेटे की पहल का
पिता नहीं चाहता
महीने-महीने का भत्ता
वो चाहता सम्मान सहित
जीने का आसरा
पिता अपने अरमानों
को अंदर दबा लेता है
जाने अनजाने अपने बेटे से
अरमान जगा लेता है
बेटा उलझ जाता है
अपने जीवन के मायाजाल में
जब होश सँभालता है
खो चुका होता है अपने परम मित्र को
ख़ुशनसीब हैं वो बेटे
जो जीते जी बन जाते है
पिता की परम मित्र और
पाते निश्चल प्रेम , आशीर्वाद