दशहरा
दशहरा
सभी के भीतर,
रावण होता है,
जरा-सा झांकना,
आंकना खुद को,
फिर सहमत होना।
अहं का "मैं",
सहम के "हम" को,
अगर दबाने लगे,
समझना जिव्हा पे,
रावण के अवसाद का,
दंभ बाक़ी है।
सीता का हरण,
कपट था, छल था,
रामायण का चित्रण था,
बहन के मान का अपमान,
यदि आभास हो तो,
लंका-पति अभी ज़िंदा है।
वह ज्ञान था, संज्ञान था,
श्लोक था, वेदों का,
ज्ञाता भी तो था,
यदि आप में भी,
पवित्रता का, श्लोक का,
संचार हो तो दश्मेश,
कहीं ज़िंदा है।
हर साल, संकेत में,
लंकापति का दहन,
यदि दशहरा है तो,
चलिए दहन के बाद-
दंभ का नाश,
ज्ञान को स्वांस,
बहन को सम्मान मिले,
तो लंकापति का,
दहन सार्थक है।
खुशी, दर्द, दुःख,
समेकित हों,
मगर अपनों के,
सम्मान का अपमान,
ना हो तो,
शुभ दशहरा है।
आइये दशानन के,
दहन को सार्थक करें,
रामायण के आकार को,
सम्मान दें।