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ज़िन्दगी ज़िन्दगी ज़िन्दगी

ज़िन्दगी ज़िन्दगी ज़िन्दगी

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ज़िन्दगी ज़िन्दगी ज़िन्दगी

इक व्यथा इक कथा 

जैसे है ज़िन्दगी 

इक ज़रा सोचो तो 

तौलकर तुम इसे 

क्या समझ पाओगे 

तुम इसे खोलकर 

एक भटकी हुई 

रूह है जिन्दगी 

एक छिटकी हुई 

बूँद है ज़िन्दगी

इक गिला इक सिला

जैसे है ज़िन्दगी कितना ही प्यार का 

नाम है हर तरफ़ आदमी हिंसा के लिए 

बदनाम है हर तरफ़ मूँह में प्यार पर 

हाथ हथियार है 

आदमी हाय उफ़ इक रंगा सियार है 

मुहब्बत की जमीं पे 

खून से सराबोर

ज़िन्दगी ज़िन्दगी ज़िन्दगी ज़िन्दगी 

शब्द रचकर यहाँ 

बन जाता है नामचीन 

ज़िन्दगी को मगर पाता नहीं है वो बीन 

थरथराती हुई, छटपटाती हुई 

राह में बेजुबाँ कराहती हुई 

गैर का इक ख्याल जिन्दगी 

खुद में ही कोई मलाल

ज़िन्दगी ज़िन्दगी ज़िन्दगी ज़िन्दगी 

आओ हम भी ऐसा करें 

शब्द से खेलना छोड़ दें खुद को अपनी इस 

रूह की तरफ़ मोड़ दें कितने ही जन्मों से 

कितने ही अरमानों से 

खुद हमारी प्यास है ज़िन्दगी 

हमारे ही भीतर सिसकती हुई 

हैरत भरी आस है ज़िन्दगी 

ज़िन्दगी ज़िन्दगी ज़िन्दगी !!


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