ग़ज़ल
ग़ज़ल
तुम्हारे हुस्न का जलवा नजर में यूं समाया है,
बड़ी तकदीर वाले हैं जो रुतबा हमने पाया है।
हमें अपना समझते हो पता दो मेरी मंज़िल का,
तेरे इस प्यार के दम पर कदम हमने बढ़ाया है।
भूलाना आसां होता है कहीं दौर - ए - परेशां का,
तेरी उल्फत को पाने का जरर कितना उठाया है।
निगाहें जब बदलती हैं तकाज़े सर उठाते हैं,
किसी सूरत से हमने देख लो आपा बचाया है।
मवाके बन ही जाते हैं हमें कमजोर करने के,
सितम की हद बढ़ी ऐसी के अपना गम बचाया है।
ज़माने की बढ़ी कमज़ोरियां मासूम सताती हैं,
पड़ा जब हादिसा हमपे तो रूहों को जलाया है।