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Prabhanshu Kumar

Drama

2.8  

Prabhanshu Kumar

Drama

छत पर धूप में

छत पर धूप में

2 mins
649


छत पर खड़ा हूँ

तो देख रहा हूँ

सूर्य की पराबैंगनी किरणों से

घरती पर मुस्कराते फूलों को

देख रहा हूँ।


हर इंसान के चेहरे पर

ओस की बूंद पिघल रही हैं

मानो प्रकृति अपना श्रृंगार कर रही।


आज बादलों को देखा तो

समझ आया कि सूर्य

मकर राशि में प्रवेश कर रहा है

और कपड़े सूर्य की रोशनी में

इस्तरी हो रहे हैं।


छत पर धूप में

खड़ा होने पर

संसार का नाटक नजर आता है

ये वो नाटक है

जिसमें शिशु से बुजुर्ग तक

नायक नायिका का पात्र अदा कर रहे।


आज घूप में खड़ा देख रहा हूँ

कि एक तरफ किसी घर में

शहनाई बज रही हैं

तो दूसरी तरफ किसी घर में

पिण्डदान किया जा रहा।


कहीं रामायण की चौपाई सुनाई दे रही

तो कहीं अश्लीलता से रमे पॉप गीत

कहीं पंतग की कतार दिख रही

तो कहीं लोगों के हाथ में वाट्सअप।


यह संसार नाटक का रैला है

कहीं धूप है तो कहीं छँव

हमें तो धूप-छाँव दोनों से

दोस्ती निभाना है।।


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