एक और तन्हा
एक और तन्हा
तन्हाई भी एक आदत बन चुकी है
शोरगुल में मेरा जी घबराता है
तन्हाई में मैं खुद की होती हूँ
यादों की शाल ओढ़कर सुकून पाती हूँ
(1)
बंद खिड़की के कोने से 'स्ट्रीट लाइट' की
एक किरण घुस आई मेरे कमरे में,
मुझे बड़ा डर लगा
'कही ये मेरा वजूद तो मिटा नहीं देगी ?
(2)
दुनिया से मैं नाराज़ नहीं हूँ, मगर...
लोगों के नज़रिये मुझे खामखा
परेशान करते हैं
(3)
कल रात मैं अचानक बिस्तर में
उठकर बैठ गयी
उसने पूछा- ' क्या कर रही हो?"
सवाल सुनने में सीधा था,
लेकिन इच्छित जवाब ?
(4)
उस दिन मैंने सिगरेट जलाई,
मर्दाना मंडली से एक चरसी
लुक मिली
(5)
पिछले कई दिनों से देर रात तक
मोबाइल चैटिंग हो रही थी
'भला कौन हो सकता है ?'
'क्या बात हो सकती है ?'
उसकी शक्की नज़र अंधेरे में
साफ़ नजर आई
आख़िर में..
सोच तो वही अटक गयी
'मानसिक गरिबता का
प्रदर्शन ' दिखाती ये
बातें समाज को कहाँ
लेके जाएगी ?