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चांद

चांद

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सुनो न
यार सुनो न
एक बात कहनी है
वो जो अपने होठों पे
तुमने मुस्कान पहनी है
वो यूँ ही सजाये रखना
मैंने,
तेरे हिस्से के सारे आंसू
मांग लिए हैं रब से
एवज में दे दी हैं
अपने हिस्से की
सारी खुशियाँ और हंसी।
शर्त सिर्फ इतनी सी
दिन हो या रात हो
कैसे भी हालात हों
यूँ ही आसपास रहना
मेरे संग साथ रहना
सदा....

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आज रात जब चाँद
मुस्कुराने की जुर्रत कर बैठा..
तब तुमने मेरी
आँखें बंद कर दीं
और कहा कि
मत देखो चाँद को...!
मुझे अच्छा नहीं लगता
कि तुम किसी और को देखूं...!
पर जब शीतलता की
बारिश हो रही है
तुम मेरे इर्द गिर्द...
प्यार की बरसाती तान देना
पता है ना कि..
बारिश अब यहाँ होने वाली है..
तुम हर उस रौशनी से
मुझे बचाने की
कोशिश में लगे रहना...
जो तुम्हारे मेरे बीच आ जाती है...!
तुम हर उस पल को
बर्फ सा जमा देना
जो हमने साथ साथ बिताया है...!
तुम्हे पता है...ना
इस शरद पूनो की रात
पिघल कर
फिर से पानी बनने के दौरान
में तुम्हे पल पल
महसूस करना चाहता हुं

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मैंने एक चाह भर की
कि आज रात
चाँद तुम ना निकलो..!!
मैं खुली खिड़की से
निहारूं राह
सुनो तुम्हारी
पर तुम आओ
अजीब सी शै है
तुम्हारी चाह मे
एक अनबुझ प्यास |
बाहर बारिश की बूंदों ने
कुछ आस बंधाई है
आज रात तुम
बादलों के पीछे छिपे
रहना चांद
सुगन्धित हो जब
सुबह तलक नेह मिलन का
तब मेरी खिड़की तले
बिखेर देना तुम हल्की चाँदनी...
सुनो चाँद आज रात
तुम ना निकलना....!!

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सुनो
तुम इस रात में कहाँ हो
चाँद की देगची में
चढ़ा चाय का पानी
अब तो भाप बनकर
उड़ने लगा है
इस पर ढँकी आसमान
की तश्तरी पर
भाप की बूँदों के सितारे
उभर आए हैं
मैं उन पर अपनी उँगली
फिराता हुआ
तुम्हारा अक्स
उकेरे जा रहा हू...
तुम्हे भी क्या इन्जार
रहेगा मेरा....

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देखो
अब तुम ये मत कहना
मैं चांद को न देखूं
बरसती चांदनी को
निहारना छोड़ दूं
मुझे मत रोको
करने दो मुझे भी मन की
आज का चांद मैं देखूंगा
पूर्णमासी का चांद
बरसती चांदनी मैं निहारूंगा
तुमको गर ये नही सुहाता है
तो आओ मेरे संग बैठो
नही तो मुझे मत रोको
करने दो मुझे भी मन की
मुझे मत रोको
वर्ना आओ मेरे संग बैठो...


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