खुदा
खुदा
जननी है वो कर्ज का एक नाम है,
मूर्ख हैं जो ममता का लगाए दाम है।
मेरा और मेरी माँ का शायद,
कुछ अनमोल सा नाता है।
और एक खुदा है जो हर कमी,
को पूरी कर चला जाता है ।
क्योंकि,
मेरी माँ ने मुझे संभाला तब तक,
जब तक मैं पैरों पर खड़ा ना हुआ।
और उस खुदा ने संभाला तब तक,
जब तक मैं खुद बड़ा ना हुआ।
लोगों का क्या कहैं ये तो,
दोस्ती का हाथ खुद ही बढ़ाते हैं।
बहुत देखें है मैंने ऐसे भी जो,
पीठ पीछे मजाक भी उड़ाते हैं।
कुछ बिगाड़ ना सके वो मेरा,
क्योंकि,
जब तक तसल्ली ना मिली,
तब तक लोगों ने हमें बदनाम किया।
जब तक खुदा का हाथ रहा सर पर,
तब तक खुदा ने ही मेरा नाम किया।
सपने तो ऐसे थे जो बस हर बार,
ठोकरें देकर जाने क्यों मुड़ जाते थे।
लाख कोशिशें रहतीं थी मेरी पर,
वो कभी भी हाथ ना आते थे।
हार ना माना मैंने फिर भी,
क्योंकि,
ख्वाबों ने मुझे सताया तब तक,
जब तक मैं इन्सान से पत्थर ना हुआ।
पर खुदा ने मुझे तराशा तब तक,
जब तक मैं पत्थर से हिरा ना हुआ।