क्यों आते हो?
क्यों आते हो?
क्यों आते हो गणेश जी हर साल
क्या आप जानते नहीं दुनिया का हाल?
पहले ही बड़े हैं कान आपके लम्बी प्रार्थना सुन-सुनकर
क्या और बढ़ाने हैं
गाने, बैंड बाजा सुन-सुनकर?
जानते हैं आँखें बारीक हैं आपकी
कितने दुष्टात्मा के कुकर्म देखे हैं आपने
क्या कभी आँखें मूंद लेना नहीं चाहेंगे आप?
एक हाथ में मोदक लिये कब तक बैठेंगे आप
उसमे लगे आटे शक्कर के घोटाले क्या जानते नहीं आप?
इतनी बड़ी तोंद, मानव अपराधों से भरी
कब तक बढ़ाएंगें आप?
उठिये गणेश जी, फेंक कर मिठाई
संभाल कर शस्त्र एक हाथ का
कीजिए तांडव पिता जैसा
चाहे हिल जाए मुकुट आपका
दीजिए आज्ञा आपने चूहे को
भेद दें घर अमंगल अनाचारियों के
हे एक दंत, क्या कहीं दिखाई देता है एक भी संत?
तो उठाइये अपनी सूँड को
पटक दीजिए गुंडों को
जगाइये हम जैसे षंढों को वरना
न मिलेगी आपको धरती दस दिन के लिये
न मिलेगा पानी भी वापस जाने के लिये
तो कैसे आयेंगे आप हर साल
क्या आप जानते नहीं दुनिया का हाल?