इज़ाज़त इकरार का
इज़ाज़त इकरार का
तू हो जा एक इज़ाजत
हर बार मांगा करूँगा
इकरार तक के सफर में
लाख इनकार रखा करूँगा।।
देखता रहूंगा उस चाँद को
अमावस की रातों तलक।
जब तक देख ना ले वो
मेरी दीवानगी की झलक
एक टूटा आईना हूँ मैं
टुकड़ों में भी देखा करूँगा।।
तेरे चेहरे पे लटके लटों को
हल्के से हटाने की ख्वाहिश।
तुझे मनाने के खातिर हाज़िर
हर मुमकिन गुज़ारिश।
ना मानेगी जब तलक तू
तब तक मनाया करूँगा।।
तेरी साँसों की उष्माहत से
खुद को करूँगा रूबरू,
तेरी अनकही चाहतों सी
ढालूँगा खुद को हूबहू।
ढूंढ कर तेरी तमन्नाओं को
सजा कर रखा करूँगा।
उस पूनम की चाँदनी को
हथेलियों में छुपा कर,
उसकी हुस्न की हया को
देखूंगा बेहया हो कर ।
इनकार इकरार से हट कर
इजहार समेटा करूँगा।
तू हो जा एक इज़ाज़त,
हर बार मांगा करूँगा।।