एक सुकून ही नहीं मिला
एक सुकून ही नहीं मिला
बहुत कमाए है पैसे मैंने पर,
रह गया मुझे एक ही गिला।
सब मिल गया जिंदगी में पर
एक सुकून कहीं नहीं मिला।
भागता रहा उम्र भर कभी पैसे,
कभी रिश्तो में नाकामयाब रहा।
अपने ही गैर समझते थे मुझे,
समर्पण खुद को मैं करता रहा।
पैसा परिवार में जरूरत बन गया,
और मैं कमाने का जरिया था।
जिम्मेदारियों का एक बोझ था,
मैं एक गुमनाम सा नजरिया था।
जिंदगी की भागदौड़ थी हर जगह,
जरूरत में पैसों को बोलबाला था।
मैंने सब का पेट भरा था पर,
मेरे मुंह में डाला नहीं निवाला था।
कभी बाप, बेटा तो भाई बनकर,
सब कुछ मैं अकेले निभाता रहा।
सब को पूरा करने के लिए,
मैं खुद को तिनके में मिटाता रहा।
आज उम्र के इस दौर में आकर,
लोग कहते हैं किया क्या है?
सवाल का जवाब भी नहीं मिला,
सोचता हूँ जिंदगी ने दिया क्या है?
क्या यह वही रिश्ते हैं पुराने वाले,
सोचकर आता है एक ही गिला,
सब कुछ मिला जिंदगी ने पर,
एक सुकून था जो कभी नहीं मिला।