संजीदा
संजीदा
छोड़िये ज़माने में
अब क्या चलता है
यह घर हमारा है
यहाँ विरासत में
प्यार पलता है।
मोम से जीते हैं
हर रोज
यहाँ पर रिश्ते
उजाला रखने में
पूरी उम्र
गुज़ार देते हैं।
रसोई से उठती है
जिस रोज
खुशबुओं की गमक
जीभ भी जायका
सोचती है
और त्यौहार बना देती है।
कल ही दिवाली थी
आज फिर आँगन में
नया उत्सव है
सजी-धजी सी बिटिया
हर एक लम्हा
हर तारीख सजा देती है।
मनहूसियत तुम
किसी और के
दर पर दस्तक देना
ये मेरा घर है
विरासतें रूह बन
अब भी यहाँ
संजीदा रहती हैं।