लेकिन सीमा होती है
लेकिन सीमा होती है
माना कि संस्कार तुम्हारा
विवेक कभी न खोना है
कोई कितना कड़वा बोले
काम मगर सह जाना हैं
लेकिन भईया कब तक ऐसे
आँख मूंद कर बैठोगे
अधिकार अपने हिस्से का
गैरों को फोकट बाँटोगे
बंदर सारे उछल उछल कर
तुम को आँख दिखाते हैं
हक़ छीन कर आज तुम्हारा
तुम को बोल सुनाते हैं
माना अपना दिल बड़ा हो
लेकिन सीमा होती है
किस काम की ये जिंदगी
सब कुछ सह कर रोती है
******************
शशिकांत शांडिले (एकांत), नागपुर
मो.९९७५९९५४५०