कलयुग के श्रवण
कलयुग के श्रवण
एक मात पिता भक्त श्रवण था
जिसने फ़र्ज़ क्या निभाया था,
अंधे माँ बाप को कांधे पर
चारों धाम करवाया था।
एक आज का पुत्र ये देखो
निर्मम निर्लज्ज बन बैठा,
फ़र्ज़ सारे भूलकर अपने
वृद्धाश्रम ले जा बैठा।
पुष्प बिछाने वालों की
राह के कांटे बन बैठा,
जिस हृदय में वात्सल्य था
छलनी करके चीर दिया।
राम जी ने वचन की खातिर
राह चुन ली वनवास की,
एक आज के पुत्र ने देखो
ठोकर दे दी दर दर की।
श्रवण ना बन सको रहने दो
छांव में जिसकी पलते हो,
शाख उसी की मत काटो
खामोश दुआएँ देते जो।
जिसने अपना सब कुछ
बच्चों की खातिर तज दिया,
ऐसे पिता जनेता से
कुछ अपना फर्ज़ निभाओ।
मात-पिता के जैसा जग में
और कोई उपहार नहीं,
कद्र करलो गर जीते जी
श्राद्ध का कोई काम नहीं।
मत भूलों की एक दिन
सबको बूढ़ा होना है,
देखेंगे जो बच्चें अपने
वो ही फिर दोहरायेंगे।