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मेरी शिद्दत

मेरी शिद्दत

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तो क्या हुआ की फासलों ने जगह ले ली

दो दिलों के बीच में,

रिश्ते की नींव इतनी तो खोखली नहीं रही,

मेरी मुट्ठियों ने तुम्हारी शख़्सीयत को आज

भी शिद्दत से घेरा है !


पन्नों को उँगलियों से खेलने का मन करे

कभी तो

बिंदु और अल्पविराम के बीच लिखे मेरे

अहसासों को महसूस करना 

हर मतले पर एक चोट होगी हर अनुस्वार

पे उन्माद !


कभी रात का सफ़र हो तो तकना आसमान

और सितारों के बीच एक जहाँ मेरे असंख्य

अनदेखे सपनों का भी बसता है !


हर बात भूल सकते हो पर गुज़रो कभी दरिया

के करीब से तब दिल को टटोलना

समंदर की गीली रेत पर घुटनों के बल बैठकर

मुझे मुझसे मांगना याद तो होगा !


सोच के सागर में कभी लगाओ जो डुबकी

तुम्हारे मन की संदूक में मेरी धुँधली यादों

का शहर बसता है जिसमें कभी तुम्हारा

आशियाँ होता था।।



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