अरदास
अरदास
कैसे करू मैं तुझपे भरोसा,
क्या तेरा विश्वास करू?
विरोधी ध्रुव का चुंबक है तू,
कैसे तुझे अपने पास करू? ||धृ.||
तेरी रग-रग में है फैला
खुराफातों का जहर
विघटनकारी विचारों में
उलझा रहता है तू शामो सहर
उल्टी-सिधी तेरी हरकते,
कैसे मैं बर्दाश्त करू? ||१||
मेलजोल हो सबमें,
ये तुझको खलता रहता है
फूट डालने का विचार,
तेरे मन में चलता रहता है
ना मालिक बनू मैं तेरा,
ना तुझको अपना दास करू ||२||
झूठ पे झूठ बके जाना,
ये तेरी फितरत है
मै जानता हू तुझको मुझसे
कितनी नफरत है
करके तुझसे दोस्ती,
मैं कैसे खुद का उपहास करू? ||३||
तू गौर जरा सा कर बंदे,
संस्कार ही तुझपर है गंदे
खुदकी तरक्की चाहता है तो,
छोड दे सब गोरखधंधे
चाहू मै तेरा भला,
बस इस खातिर अरदास करू ||४||