रिश्ते
रिश्ते
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रिश्तों के दरवाज़ों पर
जब दस्तक देती हूँ,
मन क्यों दुखता है?
एक दिन गुजरी, जब
रिश्तों की अनमोल गली से,
दिल में उम्मीदों के अनुबंध लिए
खाली हाथ मैं वापस लौटी
अपनी टूटी आस लिए।
रिश्तों के समीकरणों को
जब हल करती हूँ,
मन क्यों दुखता है?
हो रहा व्यथित अब
ह्रदय सभी नाते रिश्तों से,
वक़्त ने ये ली है करवट कैसे,
उधड़ी बखिया रिश्तों की हो जैसे।
रिश्तों की उधड़ी बखिया को जब
सिलने की कोशिश करती हूँ,
तब मन क्यों दुखता है?