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Anand Kumar

Drama

4.8  

Anand Kumar

Drama

समय को बदलते देखा है

समय को बदलते देखा है

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179


मैंने खामोश रातों में 

आसमान को बादलों से घिरते देखा है

पुरवाई की असर से,

उन बादलों को फिर छटते देखा है।


चाँद को अक्सर तन्हा 

धरती को एक टक निहारते देखा है 

कुछ दूर यूँ ही, भटकने के बाद 

मैंने उसे फिर से बादलों में छिपते देखा है।


मैंने सूरज को उगते देखा है 

थक कर उसे हर शाम डूबते देखा है 

रौशनी के मध्यम होते ही

अँधेरे को अपनी बांह फैलाते देखा है।


रातों की नृशंसता देखी है 

तारों का अथक प्रयास भी देखा है 

आसमान को रोते देखा है

मैंने समय को बदलते देखा है।

 

मैंने उम्मीदों को टूटते देखा है 

टूटी उम्मीदों को फिर से बंधते देखा है 

नैराश्य से पीड़ित अंतर्मन में,

आशाओं के दीप जलते देखा है।


थके नेत्रों में भी अगणित

नूतन स्वप्न सजते देखा है

निष्ठुर शीत के पश्चात,

मैंने बसंत का आगमन देखा है। 

  

मैंने मरुस्थल में पुष्प खिलते देखा है 

एक पुष्प से पूरा वन बनते देखा है 

अचल हिम शिखरों से,

निर्मल जल धारा बहते देखा है

जीवन को संघर्ष करते देखा है।


नियति के विरुद्ध विजयी उसे होते देखा है

नियति को निष्फल होते देखा है 

मैंने समय को बदलते देखा है।


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