सोचना हरदम तुझे
सोचना हरदम तुझे
आजकल आदत लगी है , सोचना हरदम तुझे
हाय कैसी लत लगी है ,सोचना हरदम तुझे
सोच सारी हो गई नाकाम ,सोचूं भी तो क्या
काम मेरा अब यही है ,सोचना हरदम तुझे
बेसबर दीवानगी;संजीदगी भी गुमशुदा
धून ये जब से जगी है ,सोचना हरदम तुझे
बाग़ सा छाने लगा, मैं ओस में भीगी रहुँ
मोगरे या ग़ुलछड़ी है ,सोचना हरदम तुझे
वो परी जो खो गई थी,राह में आ के मुझे ,
रोज़ समझाने लगी है ,सोचना हरदम तुझे
तू नहीं है सामने फिर भी लगे हो थामने
क्या हसीं जादूगरी है ,सोचना हरदम तुझे
सूफियाना हो गई हूँ लौ जला के ज़ात की
पाक इबादत वही है ,सोचना हरदम तुझे