दिल की शरारत
दिल की शरारत
ना जाने क्यों दिल एक ही,
शरारत बार-बार करता है,
जब-जब देखता है तुझे ये बस,
तुझसे ही प्यार करता है।
निगाह-ऐ-शौक है कि तुझको,
जी भर के बार-बार देखूं,
ये दिल है कि इक तेरे दीदार की,
ख्वाहिश हज़ारों बार करता है।
माना कि ये मेरी नज़रों की खता है,
पर मेरा मुझ पर कोई जोर नहीं,
तेरे चेहरे की कशिश है कुछ ऐसी कि
दिल तुझे देखने को बार-बार करता है।
आँखों ही आँखों में जो तुम,
कर जाते हो दिल के कई राज़ बयां,
तेरी मासूमियत पर हर कोई,
दिल अपना निसार करता है।
ना जाने क्यों दिल एक ही,
शरारत बार-बार करता है,
तुझे ही पूजता है तेरे सज़दे से,
कब इंकार करता है।