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सागर की हिलोरें

सागर की हिलोरें

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खिड़की के पास बैठकर

सागर की हिलोरों से मुखातिब

विस्फारित नेत्रों से प्रत्यक्ष

ऊर्जा स्रोत को देख कर उन्मादित

चपल मौजों की अठखेलियों से आनंदित

हर चित्र को चित्त में समेटने को प्रलोभित

एकाग्रचित्त निश्चेष्ट भाव से मौजों को निहारकर

शून्य में ताककर खिड़की से झांककर

टकटकी बांधे मौजों की मस्ती से सशंकित

मौजें आतीं नयनों को झंझोड़ती

कभी पक्षियों के परों को सहलाती

कभी शरारती हवा को पकड़ने उसके पीछे भागती

कभी नव-यौवना के केश उड़ाकर अपने

चिर-यौवना होने का अहसास कराती

कभी मोती तो कभी कटुतम राज़ छिपाती

कभी विध्वंसक बन सजा का पात्र बनाती

उसने कभी और वास्कोडिगामा

को गंतव्य तक कोलम्बस को पहुँचते देखा तो

कभी गजनवी द्वारा सोमनाथ को लुटते देखा

इन मौजों ने कभी अमृत को बंटते देखा

तो कभी नीलकंठ को विषधर बनते देखा

कभी प्रलय के आगोश में धरा को समाते देखा

तो कभी सौ बार बिखरकर

धरा को पुन: निखरते देखा

कभी भीष्म की प्रतिज्ञा तो कभी

अर्जुन का तीर देखा

कभी कान्हा की बंसी तो

कभी राधा का धीर देखा

कभी राम का पौरुष तो कभी

कबिरा का पीर देखा

कभी सोनचिराइया का सम्मान देखा

तो कभी कलियुग के काल में

और आतंक के गाल में समाहित

उसी सोनचिराइया का आर्तनाद सुना

चिरकाल से एकांकी जीवन जीकर

इतिहास की गाथा गाती तो

कभी भविष्य को आलिंगनबद्ध

करने को अतुराती इन मौजों में खोई मैं

अब भी सशंकित सम्मोहित विस्फारित

नेत्रों से प्रत्यक्ष ऊर्जा स्त्रोत को देखकर उन्मादित ...


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