अस्तित्व
अस्तित्व
कुछ पाखंडियों का...व्यापार जोरों पर है
लगा रहे है वो भी माता का जयकार !!
वो प्रदूषित है उनको न विभूषित करना
सब मिलकर ढूंढना, अपने उजालों को
जो दब कर उनका ही चक्कर लगा रही है।
कुछ नीतियां दिखाकर ... अनीतियों पर है
बना रहे है कुछ श्रेष्ट भी भ्रष्ट एक समाज !
सब मिलकर ही भ्रष्टाचार को नष्ट करना
जिनकी नीव बंद दरवाज़े पर कराहती है
और रात के काले अंधेरों में चिल्ला रही है।
कुछ हानी समाज की मनमानी करती है
जो लगा रही है चन्दन में भी दीमक !!!
तुम सांस न लेना ऐसी खुशबू में कभी भी
तुम भ्रम की दुनिया का हिस्सा मत बनना
जो इत्र दिखाकर अस्तित्व को खा रही है।