डोली
डोली
तुम्हारी गली से ही
गुजरेगी डोली मेरी,
दुल्हन सी सजी धजी।
तुम भी शरीक होना
बारात में,
बारातियों के जैसे।
राह तकूँगी मैं,
उस राह में,
दोस्ती तुम
निभा ना पाये।
दुश्मनी हम कर ना पाये,
भूल भी गर गये हो,
फिर भी पहचान रखना,
भले ही अनजानों जैसी।
कभी गुजरो
जो मेरे आँगन से।
दो पल रुक जाना,
दहलीज के सामने।
कभी कभार नजर आ जाऊँ,
झूमती पिया की बाँहों में,
देख लेना पलकें उठा के।
सालों बाद वापस लौटूँगी,
पिया की दहलीज से,
उसी डोली में।
बस फर्क ये होगा,
तब मै ना ताकुँगी
राह तुम्हारी।
क्योंकि मैं सो रही होऊँगी
गहरी नींद में।।