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मुआफ़िक रबड़ के खिंच कर सुबह जो, शाम होती है

मुआफ़िक रबड़ के खिंच कर सुबह जो, शाम होती है

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मुआफ़िक रबड़ के खिंच कर सुबह जो, शाम होती है

थके दिन के लिऐ आराम का पैग़ाम होती है

चमक बच्चों के चेहरे पर नज़र आती है जो अक़्सर

वो माँ-बाप की कोशिश का ही अंजाम होती है

ऐसा दौर है, सुबह कोई निकले कमाने 'गर

बहुत कम किसी की कोशिश कभी नाक़ाम होती है

बिगाड़े बिन किसी का कुछ भी, हो जाती है जो रंजिश

सँवारे से भी वो रंजिश कहाँ तमाम होती है

डरना किस से है, और क्यों है डरना, आजकल साहिल

बुरी से बुरी वारदात सरेआम होती है।


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