लिख कलम कुछ ऐसा
लिख कलम कुछ ऐसा
लिख कलम कुछ ऐसा
कि सोया इंसान जगा दे।
बोल उठे हर जुबां निडर
भय उसके दिल से भगा दे।।
लिख कलम कुछ ऐसा
कि तकदीर भी बदल जाए ।
मेरा भरोसा बना रहे और
मिल मेहनत का फल जाए ।।
लिख कलम कुछ ऐसा
न सवाल हो न जवाब हो।
रचनात्मकता भरी हो जिसमें
ऐसी अभिव्यक्ति जो लाजवाब हो ।।
लिख कलम कुछ ऐसा
जो हारे को फिर विश्वास दे।
जगा दे अन्तर मन को फिर
मुझे जीतने की आस दे ।।
लिख कलम कुछ ऐसा
जो पढ़े जो कायल हो जाऐ ।
शब्द गहरे घाव तक कर दे
बस भाव से ही घायल हो जाए ।।
लिख कलम कुछ ऐसा
कि शब्दों में आवाज़ हो ।
छू जाये हर दिशा को जो
और सबको उस पर नाज़ हो ।।
लिख कलम कुछ ऐसा
जो बहती हो अविरल हो ।
समझना जिसे सहज ही
भाषा हो, शैली हो सरल हो ।।
लिख कलम कुछ ऐसा
जो लगे कि कहा 'कमल' ने।
चुपचाप खड़ा एक ओर बस
बात कह दी शब्दों की हलचल ने ।।
लिख कलम कुछ ऐसा
कि भरा हो गागर में सागर।
कविवर बिहारी न सही
पर कवि मन करती हो उजागर ।।
लिख कलम कुछ ऐसा
कुछ लगे गणित पर हो विज्ञान ।
स्पष्ट हो तार्किक हो सब
लिखा छाप छोड़ बन जाऐ महान ।।
लिख कलम कुछ ऐसा
कि अंग्रेजी मन की शरमाये ।
हिन्दी को हो गौरव स्वयं पर
खिल खिल पुलकित हो जाए ।।
लिख कलम कुछ ऐसा
न पछतावा न ग्लानि हो ।
झकझोर कर रख दे मन
भावनाओं को पर न हानि हो ।।
लिख कलम कुछ ऐसा
हो जो सबसे कुछ हट कर ।
नाम हो जाऐ 'कमल' का, रहूँ
जुबां पर और हृदय में पट कर ।।