अर्थपूर्ण सार
अर्थपूर्ण सार
मेरे मन में हमेशा यह सवाल रहा,
बुद्ध ने क्या पाया !
वही ज्ञान ?
जो बड़े - बूढ़े
हमेशा से देते रहे हैं ?
या उस अकेलेपन का सुख,
जिसमें कोई जिम्मेदारी नहीं थी।
सुबह, दिन, रात का
कहीं कोई बंधन नहीं !
इस तप के लिए,
बाकी सबकुछ से
ऊपर उठ जाना होता है।
तो जो उठाते हैं जिम्मेदारी,
खुद से अधिक
दूसरों का ख्याल रखते हैं,
उनकी ज्ञान तपस्या कम अद्भुत नहीं !
उनके अनुभव
विस्तृत जिंदगी का
अर्थपूर्ण सार होते है,
वे कठिनाइयों से
कतराकर नहीं निकलते ।
उनके जीवन शब्दकोश में,
महाभिनिष्क्रमण नाम का
कोई शब्द
कभी आता ही नहीं।
हर दिन,
हर रात
वे संघर्षों के चक्रव्यूह
से निकलते हैं,
फीकी ही सही,
खुद अपने लिए खीर
या जली हुई रोटी बनाते हैं,
और बचाये गए
सुख की मिठास को,
परिवार के आगे रख देते हैं।
उन्हें बस निर्वाह
करना आता है,
और वे वही करते हैं।
... हाँ, ये अलग बात है
कि उनका नाम
वही रह जाता है,
इतिहास उनके बारे में
कुछ नहीं कहता !!!