छातियाँ
छातियाँ
ताकते रहते हो क्या तुम छातियाँ
छातियाँ है साब ज़िम्मेदारियाँ
ये तुम्हारी पीढ़ियों की खाद है
दुधमुँहों की जुबां का स्वाद है
तुम नज़र से कर रहे छलनी इसे
भाग्य कहता है बुरी करनी इसे
बो रहे हो विष, भला क्या पाओगे
गोद में फिर वीर, क्या हुलराओगे
माँस के इन लोथड़ों में भार है
और तुम को भार से ही प्यार है
ये सृजन और जन्म का श्रृंगार है
तुम न समझे तो तुम्हें धिक्कार है