मैं बदल गया..शायद
मैं बदल गया..शायद
कभी खिलखिलाता था
अपने खेल में मग्न हो
मैं मुस्काता था
साँसों में बसी थी ये गेंद
ज़िंदगी ख़ुशनुमा थी।
ना डर था
ना खोफ़ था
एक अलग ही मज़ा
एक अलग ही जोश था।
कभी सोनिया ज़िंदगी
घूमा करती थी
घास में गूंज़ में
प्रशंसकों में दोस्तों में,
आज ज़रूरतों ने
कैसा बना दिया
दो वक़्त की रोटी ने
जीना भूला दिया।
मेरा जूनून मेरा प्यार
सब पीछे छूट गया
ज़िम्मेदारियों ने
थामा दामन ऐसा।
मैं जीना भूल गया
हाथ की बॉल बसता बनी
खिलाड़ी की वर्दी चल बसी
वस्त्र बदले मौसम बदले
शायद मैं भी बदल गया
शायद अब मैं भी बदल गया।