वो कोई और लोग थे
वो कोई और लोग थे
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जब हँसने का, मुस्कुराने का
वक़्त हुआ करता था
जब मिलने, संग बैठने का,
सुनने का, सुनाने का,
मक़सद नहीं हुआ करता था
वो कोई और लोग थे !
जब नीला दिखाने को असमाँ,
हरा बताने को हरियाली,
पेड़, साँझे चूलें; हँसी-ठहाके,
समझना, सिखाना,
जीवन की रीत हुआ करती थी
वो कोई और लोग थे !
जब आँखों की मस्ती,
नादान मुस्कुराहट को सुंदरता कहते
जब चेहरे के साफ़ आइने में
दिल साफ़-साफ़ नज़र आते
वो कोई और लोग थे !