हँसी
हँसी
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बना बैठा था मैं
हिमशैल रूठकर
छिड़ा हुआ था
एक अनकहा महासमर
पसरा हुआ था
मौन का महासागर
हम दोनों के बीच...
जब नहीं रहा गया तनकर
वह आई
आँखों में अनुनय भरकर
और
छुआ मुझे
मुझसे भी
बना रहा गया नहीं पत्थर
मैं भी ढहा भरभराकर
पहले वह
फिर मैं
फिर हम दोनों
हँसे खिलखिलाकर!