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Prabhanshu Kumar

Drama Others

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Prabhanshu Kumar

Drama Others

मृत्यु

मृत्यु

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मृत्यु शैय्या पर पड़ा-पड़ा,

मैं देख रहा हूँ अपनों को,

ये वो मेरे अपने हैं,

जो मुझे जलाने आये हैं ।


कंपित हाथों में अग्नि लिए,

वो चलते हैं गिर जाते हैं,

मुझको ज्वाला देनी है,

यह सोच ही मन घबराते हैं ।


जीवन के कितने ही सावन,

साथ गुजारे हैं हमने,

घर के इक-इक पर्दे कोने,

साथ संवारे हैं हमने ।


मेरी हर एक पीर पर,

दर्द उन्हें भी होता था,

उनका चेहरा मुरझाये,

तो मन यह मेरा रोता था ।


सात जनम के इस बंधन को,

बस यहीं तलक रह जाना होगा,

दुनिया का यह मोह जाल,

छोड़ मुझे अब जाना होगा ।


दूर खड़ा मेरा बेटा,

रो-रो कर पास बुलाता है,

अपनी इक-इक गलती पर,

हाय कितना वो पछताता है ।


बेटे का यह प्यारा आग्रह,

भी मुझको ठुकराना होगा ,

दुनिया का यह मोहजाल,

छोड़ मुझे अब जाना होगा ।


ससुराल से छमछम करती हुई,

मेरी बेटी दौड़ी आयी है,

मेरी मौत की खबर को सुन,

वो मन ही मन घबराई है ।


हाथों की मेहंदी कहती है,

पापा तुम फिर से आ जाओ,

बचपन की वो प्यारी लोरी,

फिर से मुझे सुना जाओ ।


बेटी का स्नेह निमंत्रण,

भी मुझको ठुकराना होगा,

दुनिया का यह मोहजाल,

छोड़ मुझे अब जाना होगा ।


नातेदार सभी हैं आये,

आँखों में है सबके पानी,

सबसे रिश्ते टूटे मेरे,

बस इतनी सी थी मेरी कहानी ।


दुनिया का यह मोहजाल,

छोड़ मुझे अब जाना होगा ।


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