मृत्यु
मृत्यु
मृत्यु शैय्या पर पड़ा-पड़ा,
मैं देख रहा हूँ अपनों को,
ये वो मेरे अपने हैं,
जो मुझे जलाने आये हैं ।
कंपित हाथों में अग्नि लिए,
वो चलते हैं गिर जाते हैं,
मुझको ज्वाला देनी है,
यह सोच ही मन घबराते हैं ।
जीवन के कितने ही सावन,
साथ गुजारे हैं हमने,
घर के इक-इक पर्दे कोने,
साथ संवारे हैं हमने ।
मेरी हर एक पीर पर,
दर्द उन्हें भी होता था,
उनका चेहरा मुरझाये,
तो मन यह मेरा रोता था ।
सात जनम के इस बंधन को,
बस यहीं तलक रह जाना होगा,
दुनिया का यह मोह जाल,
छोड़ मुझे अब जाना होगा ।
दूर खड़ा मेरा बेटा,
रो-रो कर पास बुलाता है,
अपनी इक-इक गलती पर,
हाय कितना वो पछताता है ।
बेटे का यह प्यारा आग्रह,
भी मुझको ठुकराना होगा ,
दुनिया का यह मोहजाल,
छोड़ मुझे अब जाना होगा ।
ससुराल से छमछम करती हुई,
मेरी बेटी दौड़ी आयी है,
मेरी मौत की खबर को सुन,
वो मन ही मन घबराई है ।
हाथों की मेहंदी कहती है,
पापा तुम फिर से आ जाओ,
बचपन की वो प्यारी लोरी,
फिर से मुझे सुना जाओ ।
बेटी का स्नेह निमंत्रण,
भी मुझको ठुकराना होगा,
दुनिया का यह मोहजाल,
छोड़ मुझे अब जाना होगा ।
नातेदार सभी हैं आये,
आँखों में है सबके पानी,
सबसे रिश्ते टूटे मेरे,
बस इतनी सी थी मेरी कहानी ।
दुनिया का यह मोहजाल,
छोड़ मुझे अब जाना होगा ।