रूह
रूह
तू थी वहां,
आवाज पहुंच न पाई जहां
मुस्कान ढूंढती रही
पर आरजू की मंशा कुछ और ही रही
साथ रहकर भी रूबरू हुए नहीं कभी
फासले बढ़ते रहे दरमियां सभी
हर पग पर आगाह करती रही
फिर भी तू आगे बढ़ती रही
मिलती नहीं कभी खुद से तू
इशारों से तुझे समझाती रही
हर बार बुलाती रही
हर बार मुझे तू झूठलाती रही
रही कुर्बत मेरी तुझसे
पर तू थी कि मिल न पाई मुझसे
है मलाल बस इतना
खुशियों का पिटारा खुला नहीं कभी तुझसे
सिलसिला यूं ही चलता रहा
अब थक गई सी लगती है तू
मुझसे मिलने को तरसती है तू
रूह भी कब जुदाा थी तुझसे
अनजान भला कब थी मैं तुझसे
आ गले लग जा तू मुझसे
है इल्तज़ा बस इतनी तुझसे
दिशा न बदल लेना तू फिर से
तेरे सुकून की छांव हूं मैं
तेरी नाव की पतवार हूं मैं
फितरत तू अपनी सँवार ले अब से
राह को नई दिशा दे तू अब से