कलयुग
कलयुग
कलयुग की करतल ध्वनि
बाजे चारों ओर
ना बचा पपीहा कोई
बचा ना कोई मोर
शान्ति का बसेरा उजड़ा
पसरा है बस शोर
कोई युग है ऐसा
कलयुग का हो तोड़
सभ्यता संस्कृति नष्ट हुआ
प्रतीक्षा की है ओर
नैतिकता ले आएगा
नई युग की भोर
कालांतर की क्यारी से
लाओ अतीत की डोर
बांध दो वर्तमान को
लगाओ ना विश्व से होड़!