वक़्त
वक़्त
आज मैंने वक्त से कहा, चलो फिर से मुस्कुराते हैं।
वक्त ने कहा मैं तो रुलाता भी हू, तो तुझे हंसाने के लिए।
मैंने तुझे ठोकर क्या दी, तू तो लड़खड़ा ही पड़ी।
मैं तो गिराता भी हूँ तो बस, तूझे ऊंचा उठाने के लिए।
ज़रा याद कर उन दिनों को, जब तेरी नींदे यूं ही उड़ जाती थी।
मैं तो हल्की-सी आहट देता हूँ, तेरे सपनो को जगाने के लिए।
फिर ना जाने क्यों, गुम हो जाती है तू दुनिया की भीड़ में।
अरे ये दुनिया तो बनी ही है, बस तुझे आज़माने के लिए।
ए वक्त थोड़ी देर ही सही, पर समझ लिया मैंने तुझे।
तू अच्छा है या बुरा बना ही है, सबक सिखाने के लिए।
अब मैंने वक्त से कहा, मुझे मंज़ूर है तेरी सारी शर्ते।
बस साथ दे दे तू, मेरे सपनों की दुनिया में जाने के लिए।