अकेलापन
अकेलापन
जिंदगी जीने का
सलीका छीन
लेता है
मुखर हो सबसे
मुखातिब हों
तरीका छीन
लेता है
भीड़ में रहकर भी
जो अलग सा
कर ही दे तुमको
जमाने मे
अकेलापन
जुबां को
भींच देता है
बहुत मुश्किल
जो होती है
नए चेहरे से
हंसने को
सभी अपने हो
मगर यतीमी
बन के जीने को
हरेक गुज़रा
हुआ लम्हा
बचपना
ढूंढा करता है
जीते
रोज हैं यारों
मगर इक युग
निगलता हैं
बहुत मन
करता है
कि अब भी
लौट के आये
हंसाती थी
जो वो बातें
उन्हें मुसलसल
फिर से दोहराएं
मगर यह
जिंदगी है दोस्त
कहां पलटती है
मुदस्सर
पल में होती है
खुद से मुयस्सर
होने को
तरसती है
कोई गुमसुम दिखे
चुपचाप हो
उसे ऐसे ही
ना छोड़ो
हाथ पकड़ो
जरा उसका
सिलवटों से
निकलने दो
बहुत मुमकिन है
तुम हंस दो तो
मुस्कुरा वो दे
बहुत मुमकिन है
तुम्हारे गुनगुनाने पे
नया एक
काफिया वो दे
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