कलाम साहब
कलाम साहब
विज्ञानपुरुष वो अनलपूत, भारतविकास, रुख़ मोड़ गया|
वो सकल व्योम का संरक्षक, इस वसुंधरा को छोड़ गया|
वो महामहिम जिसका कर पा, सम्मान धन्यता पाते थे|
कौशल, कुशाग्र मृदुवाणी से, नवप्राण मुग्ध हो जाते थे|
हे दिव्यास्त्रों के पूज्यजनक!, तेरा ऋण हम पर बाक़ी है|
तू हमसे नाता तोड़ गया, दुख रही देश की छाती है|
तेरा ही राष्ट्रसमर्पण है, अरि सीमा लाँघ नहीं सकता|
दिखलाया निष्ठाभाव, धर्म का बंधन बाँध नहीं सकता|
अंतिम पल तक जीवन जीने का, सफल मार्ग दिखलाया है|
भारत की नव-पीढ़ी हित अपना, ज्ञानकलश लुटवाया है|
हे भारत माँ के भाग्यपूत!, हमको विश्वास नहीं होता|
तू बीच हमारे नहीं आज, ऐसा एहसास नहीं होता|
तेरा अमूल्य हर नीतिवाक्य, जन जीवन सफल बनाएगा|
इस घोर तिमिर के अंधपटल पर, पुण्यप्रकाश दिखाएगा।
भारत की माटी का कण-कण, युग-युग तक तुझको ध्याएगा।
जब तक विज्ञान धरा पर है, तेरी गाथाएं गाएगा।