सात दिनों की कहानी
सात दिनों की कहानी
रफ्तार की जिंदगी थी फुरसत ना थी ख्वाबों के लिए,
सपने हकीकत में बदल रहे थे कुछ दिनों के लिए,
बस कुछ सात दिनों की कहानी है मेरे ख्वाबों की,
कुछ सुलझे सवाल और अनसुलझे जवाबों की।
पहला ही दिन था जब ख्वाबों का कारवाँ शुरू हुआ,
नजरें मिली, आँखे चार हुई और कोई रूबरू हुआ,
दूजे दिन की बातें निराली जब पिए थे प्यार की प्याली,
हमारी हरकतों ने उन्हें बना दिया ख्वाब और ख्याली।
तीसरे दिन उनका हाल बुरा जब वो ऐतबार करते रहे,
जो देखा एक पल तो बस हमारा इंतजार करते रहे,
इजहार में उनके भी कुछ अपनों जैसे बात थी,
डूबते गए हम उनके ख्यालों में वो चौथी रात थी।
पाँचवें दिन में सारा ख्वाब था कुछ यूँ ही टूटा,
और उस पल फासलों का कहर भी छूटा,
छठवें दिन दरमियों में प्यार की हार नजर आई,
इस तरह यह कहानी एक नए मोड़ पर आईं।
सातवें दिन वो बस एक दूजे को अनजान बनाए,
प्यार करने की फिर फुरसत कहाँ से आए,
बस इसी उम्मीद से खत्म हो जाती है जिंदगानी,
अधूरे प्यार था ये जो बनाया सात दिन की कहानी।