प्रेमी की पुकार
प्रेमी की पुकार
बनकर हरियाली छाई हो
जीवन के सुंदर उपवन में,
अब और किसी को क्या देखूँ
छाई हो तुम ही तुम मन में!
दूर चमक रहा बादल में देखो-
प्रियतम वो चाँद,बात हमारी करता है!
तुम हो लेकिन मगरूर बड़ी,
मेरा दिल पक्षी सा तड़पता है!
इन साँसों की सरगम तुमसे,
हर खुशी और हर ग़म तुमसे
तुम ही तुम मन पर छाई हो
मैं झौंका मस्त हवा का,
तुम मस्तानी पुरवाई हो!
इस जन्म का यह मिलन नहीं,
जन्मों का अपना नाता है!
मैं वाणी से क्या समझाऊँ,
इस दिल को चेहरा तेरा ही भाता है!
एक नदिया के दो छोर हैं हम,
न मिलना अपना संभव है!
तुम धरती हो मैं अंबर हूँ
सोचना ही असंभव है!
तेरा मुझसे,मेरा तुझसे,
मिलन' क्षितिज' जैसा है
प्रतीत तो होता मिल गये हम,
पर यह तो एक 'भ्रम' जैसा है!