मंज़िल
मंज़िल
हिम्मत करके मैं चल ही पड़ा,
अपनी मंज़िल की तलाश में,
कुछ पाने, कुछ कर गुज़रने की आस में ,
दिल में उमंगें भरी,ढेर सा उत्साह लिए ,
पुरानी खट्टी मीठी यादों के साथ मैं चल ही पड़ा,
कुछ पाने की आस में,
अपनी मिट्टी अपने लोगों को छोड़,
बढ़ा ही लिए कदम अपने लक्ष्य की ओर ,
बहुत कशमकश थी चलने से पहले,
नये लोग, नया आसमान,
अनगिनीत धुविधाओं के साथ,
मन में तराने लिए,प्रभु में विश्वास
लिए कुछ बन कर,
परिवार का नाम रौशन कर,
लौट कर आने के लिए चल ही पड़ा,
फिर सच है कि कहीं पहुचने के लिए
कहीं से निकलना ज़रूरी होता है,
कहीं ना कहीं मान में अटूट विश्वास है
कि मैं एक दिन अपनी मंज़िल को पा ही लूँगा,
हिम्मत करके मैं चल ही पड़ा
अपनी मंज़िल की तलाश में|