जन्नत के नजारे
जन्नत के नजारे
कहाँ देखे थे,जन्नत के नज़ारे हमने ।
ये तो बस दो पल जीने के बहाने थे ।।
मेरा जाना यहाँ पहले ही निर्धारित था ।
बस वक़्त से कुछ मौके चुराने थे मैनें ।।
दिल के सारे ग़म भूल गये यहाँ आकर ।
आखिर जो चाहिए था,मिल गया हमें ।।
यहाँ की फिजायें मेरे तन,मन को छूकर ।
महसूस करवा रही थी ख़ुशियाँ हमें ।।
चले जाना था मुझे ज़िन्दगी को छोड़कर ।
पहुँचकर यहाँ जीने की आस जगा दी हमें ।।
और क्या चाहिये था मुझे धरती पर ।
नई ज़िन्दगी का जो एहसास करवा दिया हमें ।।
------- रमन शर्मा हिमाचली ।