उन्मादीत पल
उन्मादीत पल
इस ख़्वाबगाह (बेडरूम) के अंदर सपनो का सुंदर जहाँ बसता है.!
अपनी सारी नाराज़गी टाँग कर आना आँगन में उगे पलाश की टहनियों पर.!
सारी परेशानीयाँ झाड़ कर आना उस जूते खाने के अंदर.!
पायदान पर पैर रखते ही उर में आबशार उड़ेलना चाहत के.!
बिस्तर पर सुकून की चद्दर बिछी है महसूस करना हर करवट पर मेरे पोरों का मखमली अहसास.!
आधे घूँघट में से दिखते मेरे गीले लबों पर एक तिश्नगी ठहरी है,
एक तुम्हारी ऊँगली की सुराही से बहते जाम की.!
नींद से बोझिल पलकें मूँदते मेरे नाम का सुमिरन
तुम्हारी थकान को मिटाकर चाँद के झूले पर झूलाएगा.!
आहिस्ता-आहिस्ता मेरी आगोश में पिघलेगा
तुम्हारा तन मेरे आँचल की खुशबू से सराबोर होते.!
मेरी ऊँगलियों के स्पर्श की छुअन सहलाते तुम्हारे बालों से उतरेगी रूह की गलियों में.!
दो उन्मादीत उर के ये स्पंदन चार दीवारों से लिपटे वैवाहिक जीवन की चरम है.!
शृंगार रस की सुंदर सी छवि मेरी कल्पनाओं में बसी उतार लूँ अंतरंग पलों को खास बनाकर.!
एक प्यारे से सफ़र में तुम ओर मैं बहते चले एक दूसरे की धड़कन सुने, स्वर्ग की सैर पर चले।