रात है अनोखी
रात है अनोखी
बैठी थी मैं उदास एकांत में
छत के कोने में छिपकर,
देख लिया शरद के चाँद ने।
खेलने लगा लुका छिपी
मेरे अंग-प्रत्यंग से,
कर दिया मेरी
उदासी को उड़न छू।
नहला कर अपनी चाँदनी से,
कर दिया रोमांचित।
कहने लगा-
मेरे रहते यह उदासी कैसी ?
हैं मेरे झोले में सिर्फ खुशियाँ
जग को उत्साहित कर,
करता हूँ सबको आनंदित।
आओ कुछ क्षण-
रूठना भूल कर
इस चाँदी सी
रात का आनंद ले।
तुम जी भर निहारो मुझे
मैं दूँ जी भर प्यार तुम्हें।
इन जुगनुओं से टिमटिमाते
तारों को देखो-
नहीं मालूम,
कौन सा पल आखिरी है।
पर हर क्षण खुशी से
जगमगाते हैं।
आज तो रात है अनोखी
करूगां मैं अमृत की वर्षा
परहित ही मेरा जीवन है।
करके चाँद से बातें मीठी मीठी,
आँखों में खुशी झलक आई।
भूल कर गम की दुनिया,
परियों के देश सैर कर आई।