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Bhavna Thaker

Classics

4  

Bhavna Thaker

Classics

अक्स

अक्स

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एक खिड़की खुली है आज 

भीतर छुपे अन्जाने अबूझे संसार की ओर, 

कुछ अनाम सा ढूँढते 

ज़िंदगी की धूप में एक साया मिल गया।

कौन है क्या पता 

शायद मेरा है या शायद नहीं,

रूह की जासूसी करते मिल गया

टकरा गया मेरी स्मृतियों के अवशेष से। 

कुछ जाना पहचाना मिलता जुलता, 

मनभावन एहसास से।


हाँ, वही तो है सदियों से

यथार्थ मेरे साथ जुड़ा, 

मेरी खोज की संभावना से परे मिला है 

जरुर कोई राब्ता पुराना है।

बेशक प्रिय है 

बिछड़ने का सबब पूछूँ

या लगा लूँ गले, 

तोहमत की आड़ में दोबारा नहीं खोना है। 

जैसा भी है मेरा ही तो अक्स है, 

ज़िंदगी की आपाधापी में 

खुद से ही खुद को खो दिया था, 

मैं निकल गई थी आगे वो पीछे छूट गया था,

मेरा ही साया मुझसे बिछड़ गया था।


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