अर्पण कुमार की कविता 'साया'
अर्पण कुमार की कविता 'साया'
कविता साया अर्पण कुमार साया एक सच है श्यामवर्णी सच किसी वस्तु, निर्मिति या फिर किसी व्यक्ति के होने का, इसका भी कि वह रोशनी की ज़द में है और वह उस ज्योति को जज़्ब कर पाता है अपने भीतर, स्कूल की किताबों में पढ़ते आए हैं हम सब रोशनी के रास्ते में कोई अपारदर्शी माध्यम आ जाए जब, तो उसका साया बनता है सतह पर ..... सहयोग से चीजें नई दिशाओं में बढ़ती हैं अवरोध से चीजें नई शक्ल लेती हैं साया सिखलाता है हमें ज़रूरी है किसी न किसी आधार का होना साए के निर्माण के लिए जैसे ज़रूरी है किसी फ़िल्म को देखने के लिए स्क्रीन का होना, फ़िल्म क्या है एक चलता-फिरता साया ही तो तभी तो सिनेमा को चलचित्र कहा गया और स्क्रीन क्या है एक आधार ही तो जिसे रुपहला पर्दा कहा गया .... साया का निर्माण भौतिकी का विषय है साया का उपयोग साहित्य का , छायावाद से लेकर जादुई यथार्थवाद तक में किसी न किसी रूप में सायों का कलात्मक उपयोग करते आए हैं कवि-कथाकार साए का बड़ा महत्व है मसलन, जिन लोगों ने अपने को घनघोर रूप से अकेला पाकर आत्महत्या की, अगर वे तब अपने सायों से दो चार बातें कर लिए होते तो आज जीवित होते हमारे बीच, वे सिधार गए हड़बड़ी में तो कुछ हताशा में अन्यथा उनका साया, उनकी राह कब से देख रहा था! साया एक साक्ष्य है हमारे अस्तित्व का अस्तित्व के आकार का, बनते-बिगड़ते परिवर्तनशील साए हमारे चलायमान होने के समर्थन में खड़े हैं हम अकेले नहीं हैं जबतक हमारे पास हमारा साया है हम अँधेरे में नहीं हैं …......